छत्तीसगढ़ में ग्रामीण उपभोग प्रवृत्ति
का बदलता
स्वरूप : एक विष्लेषणात्मक
अध्ययन
डॉ. ओमप्रकाश बघेल1,
डॉ. बी.
एल. सोनेकर2
1सहायक प्राध्यापक
(अर्थशस्त्र),
शासकीय बाला साहाब देशपाण्डे महाविद्यालय,
कुनकुरी (छ.ग.)
2एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशस्त्र अध्ययन
शाला ,
पं. रविशकर शुक्ल
विष्वविद्यालय,
रायपुर (छ.ग.)
*Corresponding Author E-mail: sonekarptrsu@gmail.com
ABSTRACT:
प्रस्तावना -
ईक्कीसवीं सदी के इस युग में लोगों की जीवन स्तर एवं रहन-सहन के तरीके में बहुत बदलाव आए हैं जिससे लोगों में आरामदायक एवं विलासिता के वस्तु के उपभोग के साथ ऊर्जा के साधनों के उपयोग में भी वृद्धि हुई है। अध्ययन का उद्देष्य - ग्रामीण क्षेत्रों की उपभोग प्रवृत्ति में तीव्र परिवर्तन हो रहा है। उच्च आय प्राप्त करने वाले ग्रामीण उपभोक्ता तकनीक साधनों एवं विलासिता की वस्तुओं का अधिक उपभोग करते हैं। परन्तु आय में वृद्धि की तुलना में उपभोग में वृद्धि दर कम होती है। शोध परिकल्पनाएं - प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर निदर्ष परिवारों के मध्य खाद्य पदार्थ पर व्यय एवं गैर-खाद्य पदार्थ के व्यय में सार्थक अंतर है।
शोध प्रविधियाँ -
निदर्ष का चयन कोहरण समीकरण के आधार पर किया गया है। समंकों के विष्लेषण - एंजिल अनुापत, प्रसरण अनुपात, प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय, प्रतिषत विधि एवं औसत विधि के आधार पर किया गया है।
अध्ययन का महत्व -
बदलते उपभोग प्रवृत्ति के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास होने के साथ ग्रामीण पारिवारिक बजट में वृद्धि हुई जिससे एक परिवार की पारिवारिक आय उनके आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर एवं बचत प्रवृत्ति में भी वृद्धि हुई है।
अध्ययन की समस्या -
बढ़ती उपभोग प्रवृत्ति एक गंभीर समस्या है क्योकि उपभोग में वृद्धि होने से वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि कृषि खाद्यान्न पर बढ़ता दबाव प्राकृतिक संसाधनों अविवेकपूर्ण उपयोग होता है।
सुझाव -
इन समस्याओं के निदान के लिए खाद्य एवं अखाद्य पदार्थों का संतुलित उपभोग एवं जनसंख्या नियंत्रण किया जाये। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों विवेकपूर्ण उपयोग, उचित षिक्षा, स्वास्थ्य सड़क यातायात के साधन मनोरंजन के साधनों का विकास करना चाहिए जिससे उनकी आय में वृद्धि एवं जीवन स्तर में वृद्धि और समाज का विकास हो।
KEYWORDS:
उपभोग प्रवृत्ति पारिवारिक बजट बचत प्रवृत्ति संतुलित उपभोग प्राकृतिक संसाधन।
प्रस्तावना
स्वतंत्रता पष्चात् देष में जन कल्याणकारी योजनाओं की शुुरूआत हुई तथा सन् 1950 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ) का गठन हुआ जिसका उद्देष्य विभिन्न वर्गों द्वारा किये जाने वाले उपभोग व्यय के संबंध में सांख्यिकीय जानकारियां एकत्रित करती हैं और साथ ही गरीबी और असमानताओं के संबंध में भी आंकडे़ एकत्रित करती है, जो नीति निर्माण एवं निम्न आय समूह के लिए कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण में सहायक होती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 68वें चक्र में बताया है कि शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 1407 रूपये एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 972 रूपये आंकलित किया गया। देष के दूरस्थ ग्रामीण एवं वनांचल क्षेत्रों में सूचना क्रांति एवं परिवहन के साधनों के विस्तार से आधुनिक उत्पादों कि पहुंच इन क्षेत्रों में आसानी से हो रही है साथ ही इन ग्रामीण परिवारों में उपभोग का स्वरूप परिवर्तित होने से परिवार की बुनियादी आवष्यकताओं वाले उत्पादों की उपभोग में तेजी से कमी आई है। उपभोग प्रवृत्ति आय का फलन होती है।
देष की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग प्रवृत्ति में भी वृद्धि हुई है। निम्न आय वर्ग वाले लोगों की सीमांत उपभोग प्रवृत्ति, उच्च आय वर्ग वाले लोगों की सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है। एंजिल के प्रसिद्ध नियम के अनुसार आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग पर होने वाला व्यय का प्रतिषत क्रमषः घटता है।
उपरोक्त कारणों से देष के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक एंव खाद्यान्न वस्तुओं की उपभोग मात्रा का प्रतिषत पहले से कम हुआ है। आधुनिकीकरण से ग्रामीण जीवन की उपभोग प्रवृत्ति में अनेक परिवर्तन हुए हैं। दूरसंचार सेवाओं के विकास में वृद्धि हो रहा है। गांवों में बैकिंग सुविधाओं, ई-बैकिंग एवं ए.टी.एम. जैसी सुविधाओं का तेजी से विकास हो रहा है। इससे ग्रामीणों की उपभोग प्रवृत्ति के स्वरूप बहुत बदलाव हुआ है।
उद्देष्य
1. निदर्ष परिवारों की उपभोग प्रवृत्तियों का अध्ययन करना।
2‐ निदर्ष परिवारों की प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय में परिवर्तनों का अध्ययन करना।
3‐ निदर्ष परिवारों कि उपभोग सम्बन्धी समस्याओं का पता लगाना एवं निवारण हेतु सुझाव प्रस्तुत करना।
शोध परिकल्पनाएं
षुन्य परिकल्पना
प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों गांवों के परिवारों के मध्य खाद्य पदार्थों पर व्यय एवं गैर-खाद्य पदार्थों के व्यय में सार्थक अंतर नहीं है।
वैक्लिपक परिकल्पना
प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों गांवों के परिवारों के मध्य खाद्य पदार्थों पर व्यय एवं गैर-खाद्य पदार्थों के व्यय में सार्थक अंतर है।
शोध प्ररचना एवं प्रविधियाँ
शोधकार्य प्राथमिक संमक के संग्रहण पर आधारित है। प्राथमिक समंकों के संकलन के लिए बहुस्तरीय दैव निदर्शन प्ररचना का उपयोग किया गया है निदर्षन का चयन इस प्रकार किया गया है कि सभी परिवारों को चयन का समान अवसर प्राप्त हो। निदर्ष ईकाई के पहले स्तर पर जिले को चयनित किया गया है। अध्ययन कार्य के लिए बलौदा बाजार जिले का चयन किया गया है।
निदर्ष का आकार -
कोहरण समीकरण के आधार पर प्रतिषत विधि के द्वारा निदर्ष परिवारों चयन किया गया है। कोहरण समीकरण -
दव त्र 𝑍2𝑝𝑞ध्𝑒2
इस प्रकार कोहरण समीकरण के आधार पर प्रतिषत विधि के द्वारा शोधकार्य के लिए 12 गांवों का चयन किया गया है और शोध अध्ययन तुलनात्मक रूप से निकटस्थ ग्राम एवं दूरस्थ ग्राम के अंतर्गत 6-6 गांवों का चयन किया गया है इस प्रकार निकटस्थ गांवों में निदर्ष का कुल आकार 272 परिवार है एवं दूरस्थ गांवों के अंतर्गत निदर्ष का कुल आकार 112 परिवार है। इस प्रकार निदर्ष परिवारों का कुल आकार 384 परिवार है जिसका चयन राषन कार्ड के आधार पर किया गया है।
समंकों का विष्लेषण -
समंकों के विष्लेषण हेतु उपयुक्त सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया गया है। इनमें प्रमुख हैं- प्रतिषत विधि, औसत विधि एवं थ्-परीक्षण विधि।
1परीक्षण
प्रसरण विष्लेषण मूलतः एक अंकगणितीय रीति है। इस सांख्यिकीय रीति का प्रयोग दो या दो से अधिक निदर्ष माध्यों के अन्तरों या माध्यों की सजातीयता की सार्थकता की जांच हेतु प्रयोग किया जाता है।
प्रसरण अनुपात त्र निदर्षों
के मध्य प्रसरण
निदर्षों के अंतर्गत प्रसरण
2 प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय (एम. पी. सी. ई.) - परिवार की मासिक उपभोग व्यय को परिवार के आकार से विभाजित करके प्राप्त किया जाता है।
प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय
परिवार की मासिक उपभोग व्यय
परिवार का आकार
एंजिल अनुापत -
एंजिल के प्रसिद्ध नियम यह बताता है कि आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग पर होने वाला व्यय का प्रतिषत क्रमषः घटता है तथा यह भी बताता है कि देष के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक एवं खाद्यान्न वस्तुओं की उपभोग मात्रा का प्रतिषत पहले से कम हुआ है।
एंजिल अनुापत त्र
परिवार की मासिक उपभोग व्यय 100
कुल उपभोग व्यय
सारणी क्रमंक के अंतर्गत निकटस्थ एव दूरस्थ ग्राम के अंतर्गत निदर्ष परिवारों की खाद्य और गैर-खाद्य पदार्थों पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के विष्लेषण से ज्ञात होता है कि निकटस्थ ग्रामों में कुल निदर्ष परिवारों की प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 1386 रूपये हैं एवं दूरस्थ ग्रामों में निदर्ष परिवारों में खाद्य पदार्थों एवं गैर खाद्य पदार्थों पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 1291 रूपये हैं अर्थात् निकटस्थ ग्रामों में खाद्य पदार्थों एवं गैर खाद्य पदार्थों पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय सर्वाधिक है।
सारणी क्रमांक के विष्लेषण से यह ज्ञात होता है कि निदर्ष परिवारों की कुल संख्या 384 है जिसमें खाद्य एवं गैर खाद्य पदार्थों पर कुल मासिक व्यय 3057934 रूपये हैं जिसमें निकटस्थ गांव के अंतर्गत खाद्य एवं गैर खाद्य पदार्थों पर कुल मासिक व्यय 2225169 रूपये हैं तथा दूरस्थ गांव में कुल मासिक व्यय 807549 रूपये हैं।
सारणी क्रमांक 1.3 से यह ज्ञात होता है कि निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों ग्रामों में खाद्य पदार्थों का एंजिल अनुपात क्रमषः 40 एवं 44 है अर्थात् निकटस्थ ग्रामों में खाद्य पदार्थों का एंजिल अनुपात दूरस्थ ग्रामों की अपेक्षा कम है तथा निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों ग्रामों में गैर-खाद्य पदार्थों का एंजिल अनुपात क्रमषः 59 एवं 55.9 है अर्थात् निकटस्थ ग्रामों में गैर-खाद्य पदार्थों का एंजिल अनुपात दूरस्थ ग्रामों की अपेक्षा अधिक है।
परिकल्पना परीक्षण
शुन्य परिकल्पना -
प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों गांवों के परिवारों के मध्य खाद्य पदार्थों पर व्यय एवं गैर-खाद्य पदार्थों के व्यय में सार्थक अंतर नहीं है।
वैक्लिपक परिकल्पना -
प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों गांवों के परिवारों के मध्य खाद्य पदार्थों पर व्यय एवं गैर-खाद्य पदार्थों के व्यय में सार्थक अंतर है।
थ् परीक्षण 5 प्रतिशत सार्थकता स्तर पर 271 स्वातंत्रय की कोटियों के लिए थ्वण्5 का सारणीमान खाद्य पदार्थ के लिए 0.787 है। थ् का परिकल्पित मान 0.213 है जो सारणीमान से कम है। इस प्रकार शून्य परिकल्पना खाद्य पदार्थ के के उपभोग व्यय के संबंध में सत्य और वैकल्पिक परिकल्पना असत्य सिद्ध होती है। इस प्रकार थ् परीक्षण 5 प्रतिशत सार्थकता स्तर पर 111 स्वतंत्रय की कोटियों के लिए थ्वण्5 का सारणीमान अखाद्य पदार्थों के लिए 1.269 है। थ् का परिकल्पित मान 1.178 है जो सारणीमान से कम है। इस प्रकार अखाद्य पदार्थों के संबंध में भी शून्य परिकल्पना सत्य और वैकिल्पक परिकल्पना असत्य सिद्ध होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर निकटस्थ एवं दूरस्थ दोनों गांवों के परिवारों के मध्य खाद्य पदार्थों पर प्रतिव्यक्ति मासिक उपभोग व्यय एवं गैर खाद्य पदार्थों पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय में सार्थक अंतर नहीं है।
निष्कर्ष
1. खाद्य एवं गैर खाद्य पदार्थों पर कुल मासिक व्यय दूरस्थ गांव की तुलना में निकटस्थ गांव में अधिक होता है।
2. निकटस्थ गांव की तुलना में दूरस्थ गांव में खाद्य पदार्थांे पर मासिक व्यय अधिक होती है। क्योंकि दूरस्थ गांव में कुल मासिक आय निकटस्थ गांव की तुलना में कम है इसलिए दूरस्थ गांव में लोग आवश्यक वस्तुओं में ज्यादा व्यय करते हं।
3. दूरस्थ गांव की तुलना में निकटस्थ गांव में गैर-खाद्य पदार्थांे पर मासिक व्यय अधिक होती है। क्यांकि निकटस्थ ग्राम में लोगों के पास आय, रोजगार की सुविधा तथा कृषि भूमि का आकार दूरस्थ ग्राम की अपेक्षा अधिक है। साथ ही निदर्ष परिवारों के सदस्यों की स्वाद में परीवर्तन के कारण खाद्य पदार्थों के प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय की प्रतिषत में वृद्धि हुई है।
4. निकटस्थ गांव एवं दूरस्थ गांव दोनों गांवों में खाद्य एवं गैर-खाद्य पदार्थों के उपभोग में व्यय का प्रतिषत दोनों ही क्षेत्रों में अधिक है जो एंजिल के नियम पर आधारित है। जो खाद्य पदार्थ एवं कुल व्यय के बीच व्युत्क्रम संबंध को दर्षता है इसके अलावा गैर खाद्य पदार्थों पर व्यय का प्रतिषत आय वृद्धि के साथ उतरोŸर वृद्धि बढ़ती है।
सुझाव
1. ग्रामीण परिवारों में आरामदायक एवं विलासिता की वस्तुओं का उपभोग करने का आदतन हो गया है जिसके कारण इन वस्तुओं के उपभोग पर असीमित व्यय करते हं और इन वस्तुओं पर व्यय कर्ज लेकर करते हैं। जिनसे लोगां की कल्याण में प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। इसलिए लोगां के बीच उनकी आदतों में संतुलित खर्च करने के लिए जागरूकता पैदा करना चाहिए।
2. ग्रामीण परिवारों में भोजन शैली एवं स्वाद दोनों में बहुत बदलाव आया है। फास्ट फुड, रेस्तां भोजन आदि खाद्य पदार्थ असानी से उपलब्ध होने के कारण लोगों में रेडीमेट भोजन के विकल्प को चयन करने में सक्षम हुए हं इसके कारण लोगों में
गतिहीन जीवन शैली के साथ अधिक वजन एवं मोटापा में वृद्धि हुई है। इसलिए लोगां को संतुलित आहार लेने के लिए जागरूक करना चाहिए।
3. ग्रामीण परिवार अपने आय का अधिकांष भाग खाद्य पदार्थों के उपभोग पर व्यय करते हं इसलिए ग्रामीणों को सस्ते कीमत पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना चाहिए।
4. लोगों की आय क्षमता में वृद्धि करना चाहिए क्योंकि लोगों की आय उनके उपभेाग व्यय का प्रमुख निर्धारक होता है।
5. मध्यम आय समूह के लोगों में प्रदर्षन प्रभाव अधिक होती है जिसके कारण उपभोग वस्तुओं पर फिजूल खर्च बहुत अधिक करते हं इसलिए लोगां को यह जागरूक करना चाहिए कि वह ऐसे प्रेरित मदो का उपभोग करे जिनसे उनकी बचत स्तर में वृद्धि हो सके। इस प्रकार उपभोक्ताओं को षिक्षित कर प्रदर्षन प्रभाव को कम किया जा सकता है।
6. ग्रामीण उपभोक्ताओं के द्वारा उपभोग वस्तुओं का फिजूल उपभोग करते हैं। इसलिए सरकार द्वारा हस्तक्षेप एवं कडे़ कदम उठाये जाना चाहिए। ताकि पर्यावरण एवं पारिस्थिकीय तंत्र को सुरक्षित किया जा सके।
संदर्भ सूची
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6- Ojha P.D. and V.V.Bhatt
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T.N. , Srinivasan , and P.K. Bardhan (Eds) , Income
Distribution in India,Calcatta, pp.163-166.
Received on 11.09.2018
Modified on 15.10.2018
Accepted on 01.11.2018
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Int. J. Ad. Social Sciences.
2018; 6(4):195-200.